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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
बिछड़ना भी तुम्हारा जीते-जी की मौत है गोया
उसे क्या ख़ाक लुत्फ़-ए-ज़िंदगी जिस से जुदा तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
हादिसा भी होने में वक़्त कुछ तो लेता है
बख़्त के बिगड़ने में देर कुछ तो लगती है
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
तुझ को क्या बनने बिगड़ने से ज़माने के कि याँ
ख़ाक किन किन की हुई सिर्फ़ बना क्या क्या कुछ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का सँवारे न सँवरना
वो उन के बिगड़ने की अदा याद रहेगी
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
बिगड़ने से तुम्हारे क्या कहूँ मैं क्या बिगड़ता है
कलेजा मुँह को आ जाता है दिल ऐसा बिगड़ता है
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का सँवारे न सँवरना
वो उन के बिगड़ने की अदा याद रहेगी