आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "बेवक़ूफ़"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "बेवक़ूफ़"
ग़ज़ल
ये गधा जो अपनी ग़फ़्लत से है बेवक़ूफ़ इतना
जो ये ख़ुद को जान जाता बड़ा होशियार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
फिरा कर दर-ब-दर चुनवाए तिनके रात दिन उन से
बनाया बेवक़ूफ़ अच्छा जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ ने
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
तभी तो हम को साज़िशों ने सर के बल गिरा दिया
हमी थे बेवक़ूफ़ जो किसी की आस पर लगे