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ग़ज़ल
हो जाए बखेड़ा पाक कहीं पास अपने बुला लें बेहतर है
अब दर्द-ए-जुदाई से उन की ऐ आह बहुत बेताब हैं हम
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ
वही आँसू वही आहें वही ग़म है जिधर जाएँ
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
गरचे है किस किस बुराई से वले बाईं-हमा
ज़िक्र मेरा मुझ से बेहतर है कि उस महफ़िल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न क़द्र-दाँ, न कोई हम-ज़बाँ, न इंसाँ दोस्त
फ़ज़ा-ए-शहर से बेहतर हैं अब तो वीराने