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ग़ज़ल
तुम्हारे हुक्म की ता'मील बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर होगी
न दामन मेरा नम होगा न मेरी आँख तर होगी
रज़ी बदायुनी
ग़ज़ल
बे-ख़ौफ़-ए-ग़ैर दिल की अगर तर्जुमाँ न हो
बेहतर है इस से ये कि सिरे से ज़बाँ न हो
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
जुनूँ को चाहिएँ बे-ख़ौफ़-ओ-आ'ली-ज़र्फ़ दीवाने
हर इक दीवार में ज़िंदाँ की हो सकते हैं दर पैदा
बलदेव राज
ग़ज़ल
मिल गई तेरे ख़यालों से तजल्ली दिल को
तल्ख़ राहों पे भी बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर जाऊँगा