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ग़ज़ल
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
आँखों आँखों में मोहब्बत का पयाम आ ही गया
मर्हबा इज़्न-ए-विदा-ए-नंग-ओ-नाम आ ही गया
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
मिटा दे ख़ुद-परस्ती को जो मय वो मय अता कर दे
वो मय जिस से न हो परवा-ए-नंग-ओ-नाम ऐ साक़ी
मेहदी मछली शहरी
ग़ज़ल
कहें हैं सब्र किस को आह नंग ओ नाम है क्या शय
ग़रज़ रो पीट कर उन सब को हम यक बार बैठे हैं