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ग़ज़ल
तू बे-नसीब है नासेह तुझे कहूँ क्या मैं
कि रंज-ए-इश्क़ में होती हैं राहतें क्या क्या
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
कहाँ हैं अहल-ए-बहार और कहाँ है दावत-ए-गुल
कि बे-नसीब गुल-ओ-गुल्सिताँ से रूठ गए