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ग़ज़ल
दर्स लेंगे दिल के इक बे-रब्त अफ़्साने से क्या
अहल-ए-दुनिया चाहते हैं तेरे दीवाने से क्या
महमूद सरोश
ग़ज़ल
क्यों न अपनी दास्ताँ बे-रब्त अफ़्साना रहे
तुम से हम मानूस हो कर ख़ुद से बेगाना रहे
विशनू कुमार शाैक़
ग़ज़ल
इम्तियाज़ काविश
ग़ज़ल
सुनते जाओ मिरा बे-रब्त फ़साना शायद
इन्ही बातों में कोई बात हसीं आ जाए