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ग़ज़ल
कुछ इस तरह वजूद मिरा बे-हिसी में था
एहसास-ए-ग़म न लुत्फ़-ए-ख़ुशी ज़िंदगी में था
मोहम्मद कलीम ज़िया
ग़ज़ल
ज़ेहन पर छा गई मौत की बे-हिसी नींद आने लगी
ढूँढता हूँ अँधेरों में आसूदगी नींद आने लगी
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है
मैं भी चुप था कि चलो सीने में ख़ंजर ही तो है
ज़ेब ग़ौरी
ग़ज़ल
ये बे-हिसी कि ज़रा भी वो पेश-ओ-पस में न था
असीर जैसे नशेमन में था क़फ़स में न था