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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
तमाम फ़सलें उजड़ चुकी हैं न हल बचा है न बैल बाक़ी
किसान गिरवी रखा हुआ है लगान पानी में बह रहा है
शकील आज़मी
ग़ज़ल
अज्दाद कहीं तुम हल डालो और फ़स्ल उगाओ करमों की
पीछे तारीख़ का हाँका है और आगे बैल डरा सहमा