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ग़ज़ल
उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना
मक़्सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
कुछ ऐसा हो कि जिस से मंज़िल-ए-मक़्सूद को पहुँचूँ
तरीक़-ए-पारसाई होवे या हो राह-ए-रिंदाना
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
इल्म का मक़्सूद है पाकी-ए-अक़्ल ओ ख़िरद
फ़क़्र का मक़्सूद है इफ़्फ़त-ए-क़ल्ब-ओ-निगाह
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कर दिया है ज़िंदगी ने बज़्म-ए-हस्ती में शरीक
उस का कुछ मक़्सूद कोई मुद्दआ हो या न हो