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ग़ज़ल
कितने मटके ख़ाली रह गए कितनी आँखें भर आईं
जब से तन्हा छोड़ गए हैं अपने गोकुल को मोहन
तन्मय मिश्रा
ग़ज़ल
बिल्लियों भागे छींके टूटे और क़िस्मत के मारे
कव्वों को भरने पड़ रहे हैं कंकर चुन चुन मटके
नादिम नदीम
ग़ज़ल
फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम