aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मस्लहत-बीं"
गाह गाह लड़ता रह अक़्ल-ए-मस्लहत-बीं सेगाह गाह लेता जा हाथ में भी पैमाना
है अज़ीज़ अपना उसे शख़्सी मफ़ादमस्लहत-बीं आज का फ़नकार है
हमारे अहद के सुक़रात मस्लहत-बीं हैंकिसी के हाथ में भी ज़हर का प्याला नहीं
मस्लहत-बीं मिरे लश्कर के जियाले सारेहौसला लाएँ कहाँ से दिल-ए-असग़र तुझ सा
हुस्न भी है मस्लहत-बीं इश्क़ भी दुनिया-शनासआप की शोहरत गई यारों की रुस्वाई गई
मस्लहत-बीं है अगर इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा तो क्याअब वो पहले की तिरा वुसअ'त-ए-सहरा भी कहाँ
मस्लहत बन गई है मोहर-ए-सुकूतअब कोई लब-कुशा नहीं होता
ख़ूब हाथों-हाथ बदला मिल गया बेदाद काआशियाँ मेरा जला घर जल गया सय्याद का
हक़ीक़तों को समझ मस्लहत-शनास न बनफ़सील-ए-जब्र से ख़ुद भी निकल उभार मुझे
बस तेरे लिए उदास आँखेंउफ़ मस्लहत ना-शनास आँखें
जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाएहमें तो ख़ून भी रोना हराम हो जाए
दरोग़-ए-मस्लहत इंसान की ज़रूरत हैये फ़िक्र क़ुर्ब-ए-क़यामत नहीं क़यामत है
मस्लहत का कोई ख़ुदा है यहाँकाम जो सब के कर रहा है यहाँ
मस्लहत के साथ थे चालाक होना ही पड़ाचंद पल को ही सही सफ़्फ़ाक होना ही पड़ा
हम हथेली पे जान रखते हैंऔर तेरी अमान रखते हैं
वहम जैसी शुकूक जैसी चीज़उम्र है भूल-चूक जैसी चीज़
मस्लहत के ज़ावियों से किस क़दर अंजान हैआइनों के बीच में पत्थर बहुत हैरान है
फिर किसी शख़्स की याद आई हैफिर कोई चोट उभर आई है
समझ सके न कभी मस्लहत ज़माने कीबस इस क़ुसूर पे खाए हैं बारहा पत्थर
कोई सूरत कोई तदबीर निकाली जाएआबरू इश्क़-ओ-मोहब्बत की बचा ली जाए
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