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ग़ज़ल
कोई है महव-ए-ऐश-ओ-तलबगार-ए-ज़िंदगी
कोई है शिकवा-संज-ओ-गिराँ-बार-ए-ज़िंदगी
बशीरून्निसा बेगम बशीर
ग़ज़ल
शबिस्तान-ए-मुसर्रत में जो महव-ए-ऐश-ओ-इशरत हैं
उन्हें इस का पता क्या रहरव-ए-मंज़िल पे क्या गुज़री
शाग़िल क़ादरी
ग़ज़ल
ख़याल-ए-यार में हो महव-ए-बे-ख़ुदी ऐसा
मुझे ख़बर नहीं दिल क्या है और जिगर क्या है
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
कि याद रख तू है शे'रों में ऐब रब्त-ए-कलाम
वो शे'र हों कि न हरगिज़ सुख़न सुख़न से मिले
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
हुआ है रंग-ए-हिना 'ऐश' ज़ेब-ए-पा उस के
ये जाए-ए-रश्क है रुत्बा हो ये हिना के लिए
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
मुज़्दा-ए-वस्ल न पहुँचा था तुझे 'ऐश' तो फिर
क्यूँ इफ़ाक़ा तिरे कल रंग की तग़ईर में था
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
ख़िर्मन-ए-ताब-ओ-तवाँ के वास्ते ऐ हम-नशीं
ग़ैरत-ए-सद-बर्क़ उस का मुस्कुराना हो गया
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
आह गुलगून-ए-बहार-ए-गुलशन देहली को 'ऐश'
मौजा-ए-बाद-ए-ख़िज़ाँ क्या ताज़ियाना हो गया
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
सच तो ये बात है ऐ 'ऐश' कि पाते हैं यहाँ
तेरे अशआ'र में तर्ज़-ए-सुख़न-ए-'मीर' की बू