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ग़ज़ल
प्यार से कर के हमाइल ग़ैर की गर्दन में हाथ
मारते तेग़-ए-सितम से मुझ को गर्दन आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
क्या है ज़िक्र-ए-आतिश-ओ-आहन कि गद्दारान-ए-गूल
मारते हैं हाथ अंगारों पे घबराए हुए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
न गर्दन मारते हैं वो न देते हैं कभी फाँसी
हसीनों को ये सब मशहूर क्यूँ जल्लाद करते हैं
ज़रीफ़ लखनवी
ग़ज़ल
अगर दिल मारते अपना तो क्यूँ ये ज़िल्लतें पाते
तिरी ख़्वाहिश में ज़ालिम हम ने सर मारा तो क्या मारा
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
तोदे जहाँ थे उस के शहीदों की ख़ाक के
तीर उस ने मारे नाज़ से दो-चार हर तरफ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
रौशनी जब माँगते हैं ये दिए की लौ से पूछ
क्यों अंधेरे काँपते हैं ये दिए की लौ से पूछ