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ग़ज़ल
मियान में उस ने जो की तेग़-ए-जफ़ा मेरे बा'द
ख़ूँ-गिरफ़्ता कोई क्या और न था मेरे बा'द
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
मैं तेरे हिज्र में बैठा हुआ कुछ फूल गिन लूँगा
मियान-ए-बे-दिली रंग-ए-गुलिस्ताँ कौन देखेगा
पल्लव मिश्रा
ग़ज़ल
मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
मज़ा आ जाए ऐसे में अगर सुन ले ख़ुदा मेरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मियान-ए-शहर हैं या आइनों के रू-ब-रू हैं हम
जिसे भी देखते हैं कुछ हमीं जैसा निकलता है
आफ़ताब हुसैन
ग़ज़ल
ज़र्दी की तरह बैज़ा-ए-बुलबुल में छुप रहे
इस बाग़ से न जाए मियान-ए-ख़िज़ाँ बसंत