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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
'आतिश' सुनी है अहल-ए-सियासत की गुफ़्तुगू
सच्चाइयों में मिर्च मसाले बहुत मिले
आतिश रज़ा सेंजूपुरी
ग़ज़ल
मैं अक्सर मिर्च सालन में ज़ियादा डाल देती हूँ
किसी सूरत तो ज़ाहिर हो मिरी रंजिश मिरा ग़ुस्सा
शाज़िया नियाज़ी
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा