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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है