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ग़ज़ल
तुम आ के क्या मुतबस्सिम हुए लहद पर मिरी
चराग़-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ जला दिया तुम ने
जमीला ख़ातून तस्नीम
ग़ज़ल
उस को हर शब है ज़वाल उस को नहीं है कुछ नक़्स
बद्र को चेहरे से उस के मुतमस्सिल न करो
आफ़ताब शाह आलम सानी
ग़ज़ल
चेहरा चेहरा मुतबस्सिम है तिरी महफ़िल में
फिर भी इक चेहरा अभी दीदा-ए-तर रखता है
मश्कूर मुरादाबादी
ग़ज़ल
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
न हो ग़ैर साथ हर-दम मुतबस्सिम ऐ परी-वश
न नमक-फ़िशाँ हो दिल के सर-ए-रीश मुस्तमिन्दाँ
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
तग़य्युरात-ए-ज़माना से सब हुए मुतअस्सिर
हमारी राह वही है कि पेश-ओ-पस में नहीं हम