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ग़ज़ल
उमैर नजमी
ग़ज़ल
ज़िंदाबाद ऐ दिल मिरे मैं भी हूँ तुझ से मुत्तफ़िक़
प्यार सच्चा है तो फिर कैसी वफ़ा कैसी जफ़ा
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
मोहतसिब और हम हैं दोनों मुत्तफ़िक़ इस बाब में
बरमला जो मय-कशी हो बे-रिया हो जाएगी
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
ग़ज़ल
जहाँ थे मुत्तफ़िक़ सब अपने बेगाने डुबोने को
उसी साहिल पे आज अपनी अना की सीपियाँ रोलें
ख़ालिद शरीफ़
ग़ज़ल
मुत्तफ़िक़ इस पर सभी हैं क्या ख़ुदा क्या नाख़ुदा
ये सफ़ीना अब कहीं भी जाए साहिल के सिवा
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
नहीं अबरू ही माइल झुक रही है तेग़ भी इधर
हमारे किश्त-ओ-ख़ूँ में मुत्तफ़िक़ बाहम हैं ये दोनों
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
सब समुंदर मुत्तफ़िक़ हो मुझ कूँ कहते हैं 'सिराज'
शोला-रू के वस्फ़ में आतिश-बयानी कीजिए
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
मुत्तफ़िक़ वो मिरे जज़्बात से कैसे होगा
जो तिलिस्मात-ए-शब-ओ-शब को दुनिया रखे