aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मुनाजात"
आशिक़ हुए हैं आप भी एक और शख़्स परआख़िर सितम की कुछ तो मुकाफ़ात चाहिए
ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दियामेरी हर एक साँस मुनाजात हो गई
शरह-ए-बेदर्दी-ए-हालात न होने पाईअब के भी दिल की मुदारात न होने पाई
तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाएमुंतज़िर दिल की मुनाजात मुकम्मल हो जाए
बात करने में तो जाती है मुलाक़ात की रातक्या बरी बात है रह जाओ यहीं रात की रात
आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम होजिस सम्त सफ़र में है मिरी ज़ात वो तुम हो
सुब्ह के वक़्त ज़र्रे ज़र्रे कीवो मुनाजात याद आती है
तो फिर ये रद्द-ए-मुनाजात की नहूसत क्यूँकभी सुना कि इबादत का क़हत पड़ गया है?
अब कहने सुनने के लिए कुछ भी नहीं रहाबस इतना काफ़ी है कि मुलाक़ात हो गई
है नाराज़ वो तू मुलाक़ात तो करजवाबात दे कुछ सवालात तो कर
इस से पहले तो दु'आओं पे यक़ीं था कम-कमतू ने छोड़ा तो मुनाजात का मतलब समझे
अगरचे वक़्त मुनाजात करने वाला थामिरा मिज़ाज सवालात करने वाला था
इल्तिजा तुझ से कब ऐ क़िबला-ए-हाजात न थीतेरी दरगाह में किस रोज़ मुनाजात न थी
क़ुव्वत-ए-कल के मसालेह से और इतने बद-ज़नवाए बर-दग़दग़ा-ए-अहल-ए-मुनाजात ऐ 'जोश'
ऐ काश हो बरसात ज़रा और ज़रा औरबढ़ जाए मुलाक़ात ज़रा और ज़रा और
मुद्दतों हम से मुलाक़ात नहीं करते हैंअब तो साए भी कोई बात नहीं करते हैं
आपस की गुफ़्तुगू में भी कटने लगी ज़बाँअब दोस्तों से तर्क-ए-मुलाक़ात चाहिए
हर रात सितारों को ज़मीं पर लिए फिरनाहर सुब्ह कहीं हम्द-ओ-मुनाजात में रहना
मैं इसी शहर में आँसू लिए फिरता हूँ जहाँपेड़ चिड़ियों की मुनाजात पे शक करते हैं
फेसबुक का भी तअ'ल्लुक़ है तअ'ल्लुक़ कैसादेख सकते हैं मुलाक़ात नहीं कर सकते
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