आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "मौज-ए-बला"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "मौज-ए-बला"
ग़ज़ल
हर मौज-ए-बला से हम जब जब कश्ती-ए-दिल टकराते हैं
तूफ़ान की नब्ज़ें डूबती हैं साहिल को पसीने आते हैं
शैख़ हसन मुश्किल अफ़कारी
ग़ज़ल
यहाँ जुज़ कश्ती-ए-मौज-ए-बला कुछ भी न पाओगे
इसी के आसरे दरिया-ए-हस्ती से उतर जाना
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
मैं अक्सर कश्ती-ए-मौज-ए-बला पर सैर करता हूँ
मुझे साहिल पे उस का इक इशारा छोड़ जाता है