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ग़ज़ल
किस हस्ती-ए-मौहूम पे नाज़ाँ है तू ऐ यार
कुछ अपने शब-ओ-रोज़ की है तुज को ख़बर भी
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
हो गया मेहमाँ-सरा-ए-कसरत-ए-मौहूम आह!
वो दिल-ए-ख़ाली कि तेरा ख़ास ख़ल्वत-ख़ाना था
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
ता-ब-कै वादा-ए-मौहूम की तफ़्सील 'फ़िराक़'
शब-ए-फ़ुर्क़त कहीं कटती है इन अफ़्सानों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जिस को मौहूम लकीरों का मुरक़्क़ा' कहिए
लौह-ए-दिल पर था यही नक़्श-ए-वफ़ा क्या करते