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ग़ज़ल
तुम से मिल कर खिल उठता था, तुम से छूट के फीका हूँ
ऐ रंगरेज़ मिरे चेहरे के सारे रंग तुम्हारे हैं
अजमल सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हर रंग में हैं पाते बंदे ख़ुदा के रोज़ी
है पेंटर तो फिर क्या रंगरेज़ है तो फिर क्या
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
ज्ञान लुटाने निकला था और झोली में भर लाया प्यार
मैं ऐसा रंग-रेज़ हूँ जिस पे रंग चुनर का चढ़ बैठा
नवीन सी. चतुर्वेदी
ग़ज़ल
पक्के रंगों में रंगी हुई औरतें कितनी नायाब हैं
ये मोहब्बत जो मश्शाक़ रंगरेज़ थी इस को क्या हो गया
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
पक्के रंगों में रंगी हुई औरतें कितनी नायाब हैं
ये मोहब्बत जो मश्शाक़ रंगरेज़ थी इस को क्या हो गया