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ग़ज़ल
जनम जनम के सातों दुख हैं उस के माथे पर तहरीर
अपना आप मिटाना होगा ये तहरीर मिटाने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
पेश करता है छुपा कर ग़म-ए-पिन्हाँ लेकिन
उस की तहरीर का हर ज़ेर-ओ-ज़बर चीख़ता है
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
क्या हुआ रंगीनी-ए-सुब्ह-ओ-मसा बाक़ी नहीं
अपने ही घर में वो पहली सी फ़ज़ा बाक़ी नहीं
हबाब हाश्मी
ग़ज़ल
ब-नाम-ए-मुख़्तलिफ़ दौर-ए-सुबू-ओ-जाम होता है
ब-ज़ाहिर फ़र्क़-ए-रंगीनी-ए-सुब्ह-ओ-शाम होता है
बिशन दयाल शाद देहलवी
ग़ज़ल
जहाँ रंगीनी-ए-हूर-ओ-तहूरा सर-बसर होगी
वहाँ ग़म्माज़ी-ए-ख़ुश्की-ए-ईमाँ कौन देखेगा
बिशन दयाल शाद देहलवी
ग़ज़ल
चमन में ख़ार ही क्या गुल भी दिल-फ़िगार मिले
फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-रंगीनी-ए-बहार मिले