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ग़ज़ल
है मिरा रंग-ए-सुख़न रंग-ए-बयाँ कुछ मुख़्तलिफ़
ये नशात-ए-दिलबरी तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ कुछ मुख़्तलिफ़
शाहिदा लतीफ़
ग़ज़ल
हसरत ही दिल में कोहकन आख़िर ये ले गया
शीरीं ने अपनी आँखों भी देखा न रू-ए-शीर
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
ये जो उस शोख़ पे करता है 'बयाँ' जान निसार
ख़ब्त है इश्क़ है सौदा है वफ़ा है क्या है
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
जूँ मिसाल उस की नुमूदार हुई तूँ ही 'बयाँ'
तपिश-ए-दिल ने किया ख़्वाब से बेदार मुझे
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
मत दर्द-ए-दिल को पूछ ब-क़ौल-ए-'फ़ुग़ाँ' 'बयाँ'
इक उम्र चाहिए मिरा क़िस्सा तमाम हो
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
ये आरज़ू है कि वो नामा-बर से ले काग़ज़
बला से फाड़ के फिर हाथ में न ले काग़ज़
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
हमें दा'वा था देखेंगे वो क्यूँकर याद आते हैं
रग-ए-जाँ बन गए हैं अब फ़ुज़ूँ-तर याद आते हैं