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ग़ज़ल
अना के रंग-महलों में वो जोगन बन के बैठी है
जिसे बस्ती के सारे लोग शहज़ादी समझते हैं
कलीम क़ैसर बलरामपुरी
ग़ज़ल
कुछ रूप-नगर का ज़िक्र करो कुछ रंग-महल की बात करो
रंगीन फ़ज़ा है महफ़िल की रंगीन ग़ज़ल की बात करो
अज़ीज़ वारसी
ग़ज़ल
वास्ते तेरे मिरा रंग-महल है दुश्मन
तेरी ख़ातिर तो हर इक छोटी बड़ी मुझ से लड़ी
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
चमन के दिल-नशीं ख़ुश-रंग मंज़रों के चराग़
ये तितलियों की गुज़रगाहें ये गुलों के चराग़
अब्दुल हफ़ीज़ ख़लिश तस्क़ीनी
ग़ज़ल
बचपन याद के रंग-महल में कैसे कैसे फूल खिले
ढोल बजे और आँसू टपके कहीं मोहर्रम होने लगा
अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
तश्बीहों के रंग-महल में कोई न तुझ को जान सका
गीत सुना कर ग़ज़लें कह कर दीवाने कहलाए हम