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ग़ज़ल
वो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था
चाँद भी अधूरा था मैं भी ना-मुकम्मल था
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
शमा ज़फर मेहदी
ग़ज़ल
दुनिया की रंजिशों की शिकायत करें तो क्या
ख़ुद अपने ही नसीब से हम दू-बदू रहे