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ग़ज़ल
रंज-ओ-ख़ुशी का दहर ने देखा है इम्तिज़ाज
होती है क़हक़हों से भी रिक़्क़त कभी कभी
साक़िब अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
रंज ओ ख़ुशी की सब में तक़्सीम है मुनासिब
बाबू जो है तो फिर क्या चंगेज़ है तो फिर क्या
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
गुलचीं के चेहरे की रंगत रोज़ बदलती रहती थी
रंज-ओ-ख़ुशी के हर मौसम में फूल का एक लिबास रहा
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
रंज-ओ-ख़ुशी 'सरताज' बहम हैं ये दुनिया की महफ़िल है
ग़म की तानें कहीं पे जागें शोर कहीं शहनाई का
सरताज आलम आबिदी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
अब मैं हूँ उस मक़ाम पर रंज-ओ-ख़ुशी जहाँ हैं एक
शाम-ए-अलम का ज़िक्र क्या नूर-ए-सहर में कुछ नहीं
साबिर देहलवी
ग़ज़ल
उम्मीदी-ओ-ना-उम्मीदी से रंज-ओ-ख़ुशी से बाला-तर
अब जो अगर देना तो मुझे तुम ऐसा आलम दे देना
वक़ार ताहिरी
ग़ज़ल
हज़ारों रंज-ओ-ग़म दे कर ख़ुशी की बात करते हैं
है ख़ंजर आस्तीं में दोस्ती की बात करते हैं
मक़बूल अहमद मक़बूल
ग़ज़ल
ख़ुशी के दौर-दौरे से है याँ रंज-ओ-मेहन पहले
बहार आती है पीछे और ख़िज़ाँ गिर्द-ए-चमन पहले