ख़ुशी के दौर-दौरे से है याँ रंज-ओ-मेहन पहले

ख़ुशी के दौर-दौरे से है याँ रंज-ओ-मेहन पहले
विनायक दामोदर सावरकर
MORE BYविनायक दामोदर सावरकर
रोचक तथ्य
इस ग़ज़ल की रचना सावरकर की क़ैद के दौरान अंडमान की सेलुलर जेल में हुई।
ख़ुशी के दौर-दौरे से है याँ रंज-ओ-मेहन पहले
बहार आती है पीछे और ख़िज़ाँ गिर्द-ए-चमन पहले
मोहिब्बान-ए-वतन होंगे हज़ारों बे-वतन पहले
फलेगा हिन्द पीछे और भरेगा अंदमन पहले
अभी मे'राज का क्या ज़िक्र ये पहली ही मंज़िल है
हज़ारों मंज़िलें करनी हैं तय हम को कठन पहले
मुनव्वर अंजुमन होती है महफ़िल गर्म होती है
मगर कब जब के ख़ुद जलती है शम'-ए-अंजुमन पहले
हमारा हिन्द भी फूले फलेगा एक दिन लेकिन
मिलेंगे ख़ाक में लाखों हमारे गुल-बदन पहले
उन्हीं के सर रहा सेहरा उन्हीं को ताज क़ुर्बां हो
जिन्होंने फाड़ कर कपड़े रखा सर पर कफ़न पहले
न हो कुछ ख़ौफ़ मरने का न हो कुछ फ़िक्र जीने की
अगर ऐ हम-दमों मन में लगी हो ये लगन पहले
हमारा हिन्द भी यूरोप से ले जाएगा बाज़ी
तिलक जैसे मोहिब्बान-ए-वतन हों इंडियन पहले
न सेहत की करें पर्वा न हम दौलत के तालिब हों
करें सब मुल्क पर क़ुर्बान तन मन और धन पहले
हमें दुख भोगना लेकिन हमारी नस्लें सुख पाएँ
ये मन में ठान लें अपने ये हिन्दी मर्द-ओ-ज़न पहले
मुसीबत आ क़यामत आ कहाँ ज़ंजीर-ओ-ज़िंदाँ हैं
यहाँ तैयार बैठे हैं ग़रीबान-ए-वतन पहले
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.