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ग़ज़ल
क्या कारवान-ए-हस्ती गुज़रा रवा-रवी में
फ़र्दा को मैं ने देखा गर्द-ओ-ग़ुबार-ए-दी में
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
रवा-रवी में लगे आँख किस तरह से 'नज़ीर'
मुसाफ़िरों को कहाँ ऐसे इज़्तिराब में ख़्वाब
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हर-दम रवा-रवी में है ये तौसन-ए-हबाब
हर-वक़्त अपना पाँव है गोया रिकाब में
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर देहलवी
ग़ज़ल
'जमील' हम उठ के गिर पड़े और गुज़र गया कारवाँ हमारा
ग़ुबार की बात तक न पूछी मुसाफ़िरों ने रवा-रवी में
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
रवा-रवी में है उम्र मेरी शिकार हूँ ग़लबा-ए-सफ़र का
ज़रा ठहर जाए वक़्त की रौ शिकायत-ए-रोज़गार कर लूँ