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ग़ज़ल
सई-ए-हक़ में मेरे माथे का पसीना देख कर
पानी पानी हो गईं मौजें भी लहराने के बा'द
रहमत इलाही बर्क़ आज़मी
ग़ज़ल
वो मय कि जिस से हर ग़म-ओ-अंदोह-ओ-यास का
हो जाए हश्र तक के लिए सद्द-ए-बाब ला
रहमत इलाही बर्क़ आज़मी
ग़ज़ल
हम ने सई-ए-ज़ब्त बहुत की आँसू फिर भी आ ही गए
इन अश्कों का यार बुरा हो राज़-ए-दिल सब खोलें हैं
रहमत अमरोहवी
ग़ज़ल
अल्लह रे मेरे अश्क-ए-नदामत की बेकसी
वज्ह-ए-नुज़ूल रहमत-ए-हक़ बन गई मुझे