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ग़ज़ल
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
हमें भी अपने अच्छे दिन अभी तक याद हैं 'राना'
हर इक इंसान को अपना ज़माना याद रहता है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना
मगर फिर ख़ुद-ब-ख़ुद वो आप का गुलनार हो जाना
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
जुदा रहता हूँ मैं तुझ से तो दिल बे-ताब रहता है
चमन से दूर रह के फूल कब शादाब रहता है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
तूबा-ए-बहिश्ती है तुम्हारा क़द-ए-रा'ना
हम क्यूँकर कहें सर्व-ए-इरम कह नहीं सकते