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ग़ज़ल
ख़ुदा वो दिन भी दिखाए कि मैं कहूँ 'बेख़ुद'
जनाब-ए-'दाग़' से मिलने मैं राम-पूर आया
बेखुद बदायुनी
ग़ज़ल
'रामपूर' जी ये मत पूछो दिल मेरा रोने लगता है
क्या बोलों सोचा है कितना और उस को पाया है कितना
ख़लील रामपुरी
ग़ज़ल
कभी मिलते थे वो हम से ज़माना याद आता है
बदल कर वज़्अ छुप कर शब को आना याद आता है
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
आदत से उन की दिल को ख़ुशी भी है ग़म भी है
ये लुत्फ़ है सितम भी है उज़्र-ए-सितम भी है