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आरज़ूओं को अपनी कम न करो

जावेद कमाल रामपुरी

आरज़ूओं को अपनी कम न करो

जावेद कमाल रामपुरी

MORE BYजावेद कमाल रामपुरी

    आरज़ूओं को अपनी कम करो

    जीना चाहो तो कोई ग़म करो

    हाथ आए ख़ुशी तो ख़ुश होलो

    दिल हो ग़मगीं तो आँख नम करो

    जैसी मिल जाए जिस क़दर मिल जाए

    पी भी लो फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम करो

    जैसी गुज़रे गुज़ारते जाओ

    साज़-ओ-सामाँ कोई बहम करो

    लोग कहते फिरें तुम्हें क्या क्या

    आप अपने पे ये सितम करो

    जी में जो आए वो लिखो साहब

    जो ज़माना कहे रक़म करो

    स्रोत :
    • पुस्तक : Awaz Na Do (पृष्ठ 14)
    • रचनाकार : Javed Kamal
    • प्रकाशन : Sky Lark Publishers, Aligarah (1993)
    • संस्करण : 1993

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