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ग़ज़ल
लिपट जाती है सारे रास्तों की याद बचपन में
जिधर से भी गुज़रता हूँ मैं रस्ता याद रहता है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
मुझे हम-सफ़र भी मिला कोई तो शिकस्ता-हाल मिरी तरह
कई मंज़िलों का थका हुआ कहीं रास्तों में लुटा हुआ
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेच-ओ-ख़म
ज़िंदगी-भर तो किताबों का सफ़र मैं ने किया
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
अजब सफ़र था कि हम रास्तों से कटते गए
फिर इस के बा'द हमें लापता भी होना था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
लोगों ने ख़ुद ही काट दिए रास्तों के पेड़
'अख़्तर' बदलती रुत में ये हासिल नज़र का था