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ग़ज़ल
राह-ए-तलब में कौन किसी का अपने भी बेगाने हैं
चाँद से मुखड़े रश्क-ए-ग़ज़ालाँ सब जाने पहचाने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
मिरी हमसरी का ख़याल क्या मिरी हम-रही का सवाल क्या
रह-ए-इश्क़ का कोई राह-रौ मिरी गर्द को भी न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
शौक़ की आग नफ़स की गर्मी घटते घटते सर्द न हो
चाह की राह दिखा कर तुम तो वक़्फ़-ए-दरीचा-ओ-बाम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
कोई नाज़ुक-बदन मिलता है जब अज़-राह-ए-बेगाना
तबीअत भीग जाती है तो उन की याद आती है
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
क़ब्र तक पहूँचा गए सारे अज़ीज़-ओ-अक़रिबा
आगे आगे फिर रफ़ीक़-ए-राह तन्हाई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
हट जाए इक तरफ़ बुत-ए-काफ़िर की राह से
दे कोई जल्द दौड़ के महशर को इत्तिलाअ