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ग़ज़ल
अजब रिक़्क़त-फ़ज़ा है आख़िरी मिलने का नज़्ज़ारा
गले लग लग के बिस्मिल ख़ंजर-ए-क़ातिल से मिलता है
मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल
अब जो मुल्ला वाइ'ज़ करे तो ख़ौफ़ सा आने लगता है
मोहन-दास से ना'तें सुन कर रिक़्क़त तारी होती थी
जानाँ मलिक
ग़ज़ल
अजब रूदाद है अपनी बयाँ करते हैं हम जिस से
निकल आते हैं आँसू उस को रिक़्क़त आ ही जाती है
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
हम-साए का सुख तो उस के ख़्वाब का पूरा होना है
तुम पर रिक़्क़त तारी हो तो रो लो लेकिन शोर न हो
मोहसिन असरार
ग़ज़ल
ख़ून से खींच के अश्क को अपने लाता हूँ इन आँखों तक
कितनी मुश्किल से मैं ख़ुद पर रिक़्क़त तारी करता हूँ
औरंग ज़ेब
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
महफ़िल है अंगुश्त-ब-दंदाँ अहल-ए-नज़र पर रिक़्क़त तारी
शे'र करिश्मा कर ही गया हो ऐसा भी हो सकता है
यूनुस ग़ाज़ी
ग़ज़ल
है ताज़ा-गिरफ़्तारों की फ़रियाद को क्या रिक़्क़त
शब नाला मिरा सुन कर सय्याद बहुत रोया
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
रंज-ओ-ख़ुशी का दहर ने देखा है इम्तिज़ाज
होती है क़हक़हों से भी रिक़्क़त कभी कभी
साक़िब अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
हूँ मुस्तइद-ए-रिक़्क़त फ़रहाद मुझे बहला
ले डूबेंगे तुझ को भी कोहसार जो मैं रोया
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
जा-ए-रिक़्क़त है मिरी हालत तो अब ऐ हम-नशीं
पाँव क्या सीधे करूँ मैं दम ही उल्टा जाए है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
काफ़िर ओ मोमिन को रिक़्क़त ग़म में है 'हसरत' के हाए
कुछ ख़ुदा का डर भी तुझ को ऐ बुत-ए-बेबाक है
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
दिन-भर दश्त-नवर्दी कर के ख़ुद पे रिक़्क़त तारी की
हम ने अपने दुश्मन से भी जान से बढ़ कर यारी की
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
जो देखी नर्गिस-ए-बीमार गुलशन में तो बस हम को
बहुत रिक़्क़त हुई और ना-तवानी अपनी याद आई
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
जिस को सुन कर रो रहे थे आप भी अग़्यार भी
रात वो रिक़्क़त भरी मेरी सदा थी मैं न था