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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आलम में हरे होंगे अश्जार जो मैं रोया

आग़ा हज्जू शरफ़

आलम में हरे होंगे अश्जार जो मैं रोया

आग़ा हज्जू शरफ़

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    आलम में हरे होंगे अश्जार जो मैं रोया

    गुलचीं नहीं सींचेंगे गुलज़ार जो मैं रोया

    बरसेगा जो अब्र कर खुल जाएगा दम भर में

    आँसू नहीं थमने के यार जो मैं रोया

    रोओगे झरोके में तुम हिचकियाँ ले ले कर

    यार कभी ज़ेर-ए-दीवार जो मैं रोया

    ज़ख़्मी हूँ तो होने दो क्यूँ यार बिसोरूँ मैं

    क्या बात रही खा कर तलवार जो मैं रोया

    हूँ मुस्तइद-ए-रिक़्क़त फ़रहाद मुझे बहला

    ले डूबेंगे तुझ को भी कोहसार जो मैं रोया

    मजनूँ ने कहा जाओ वहशत उन्हें दिखलाओ

    बैठा हुआ सहरा में बे-कार जो मैं रोया

    रहम ही गया उन को कटवा दे मिरी बेड़ी

    ज़िंदान में चिल्ला कर इक बार जो मैं रोया

    की ग़ुस्से के मारे फिर उस ने निगह सीधी

    इन अँखड़ियों का हो कर बीमार जो मैं रोया

    बेताबी ज़ारी पर मेरी उन्हें रहम आया

    दिखला ही दिया मुझ को दीदार जो मैं रोया

    आराम वो करते हैं रुलवा मुझे दिल

    ठहरेंगे वो हो कर बेदार जो मैं रोया

    आए थे ब-मुश्किल वो लाए थे 'शरफ़' उन को

    फिर उठ गए वो हो कर बेदार जो मैं रोया

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