आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "रीझे"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "रीझे"
ग़ज़ल
दो दिन में हम तो रीझे ऐ वाए हाल उन का
गुज़रे हैं जिन के दिल को याँ माह-ओ-साल बाँधे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
रीझते उन की अदाओं पे हैं क्या क्या लेकिन
मारे अंदेशे के गर्दन भी हिला सकते नहीं
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
मुझ को हीर सयाल से मतलब और न राँझे से कुछ काम
तोड़ के बंधन रस्मों का तुम आ जाओ तो बात बने
फ़रहत शहज़ाद
ग़ज़ल
सच-मुच अपने राँझे को ही घाइल कर के छोड़ दिया
अच्छा-ख़ासा लड़का तू ने पागल कर के छोड़ दिया
ज्ञानेंद्र विक्रम
ग़ज़ल
'ज़ौक़' ज़ेबा है जो हो रीश-ए-सफ़ेद-ए-शैख़ पर
वसमा आब-ए-बंग से मेहंदी मय-ए-गुल-रंग से