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ग़ज़ल
जो नंग-ए-चमन कहते हैं तारीख़ तो देखें
हम रूह-ए-चमन ज़ीनत-ए-गुलज़ार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
यूँ काम किए उस ने हज़ारों हमें क्या काम
हम आइना-साज़ी-ए-सिकंदर ही कहेंगे
फ़हीमुद्दीन अहमद फ़हीम
ग़ज़ल
वक़्त क्यों ख़ाक-नशीनों का उड़ाता है मज़ाक़
शायद इन में कोई हम-औज-ए-सिकंदर निकले
ख़लीक़ बुरहानपुरी
ग़ज़ल
रूह-ए-ग़म रूह-ए-तरब रूह-ए-अजल रूह-ए-हयात
जब ये बाहम मिल गईं तक़दीर-ए-इंसाँ हो गईं
बिर्ज लाल रअना
ग़ज़ल
सच सच ये कह रहा है तनासुख़ का मसअला
रूह-ए-अज़ीज़-ए-यूसुफ़-ए-कनआँ' तुम्हीं तो हो