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ग़ज़ल
मुक़द्दर में लिखा कर लाए हैं हम बोरिया लेकिन
तसव्वुर में हमेशा रेशम-ओ-कम-ख़्वाब रहता है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
पैकर जाफरी
ग़ज़ल
तुम माँगे का रेशम पहनो ऐश करो हाँ लेकिन हम
ख़ुद-दारी की फटी-पुरानी एक अकेली शाल में ख़ुश
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
इश्क़ में रेशम जैसे वादों और ख़्वाबों का रस्ता
जितना मुमकिन हो तय कर लें गर्द-ए-मलाल से पहले
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
कतरनें रंज की साँसों में गिरह डालती हैं
अब किसी रेशम-ओ-किम-ख़्वाब का क्या करना है