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ग़ज़ल
ऐ गिर्या न रख मेरे तन-ए-ख़ुश्क को ग़र्क़ाब
लकड़ी की तरह पानी में गल जाए तो अच्छा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
बे-मौसम आँखों की बदली हम को नहीं अच्छी लगती है
धुआँ धुआँ घर हो जाता है सावन की गीली लकड़ी में
बशीर बद्र
ग़ज़ल
लकड़ी की दो मेज़ें हैं इक लोहे की अलमारी है
इक शाइर के कमरे जैसी हम ने उम्र गुज़ारी है
सिदरा सहर इमरान
ग़ज़ल
मोहब्बत की बुलंदी पार कर के तुम कभी देखो
अनल-हक़ की सदा बहती हुई लकड़ी से निकलेगी