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ग़ज़ल
मिरी छत से रात की सेज तक कोई आँसुओं की लकीर है
ज़रा बढ़ के चाँद से पूछना वो उसी तरफ़ से गया न हो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
कोई महकार है ख़ुश्बू की न रंगों की लकीर
एक सहरा हूँ कहीं से भी गुज़र जा मुझ में
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
पत्थर की लकीर है नक़्श-ए-वफ़ा आईना न जानो तलवों का
लहराया करे रंगीं-शोला दिल पलटे खाना क्या जाने
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
इक़बाल अशहर
ग़ज़ल
अभी रौशनी की लकीर सी सर-ए-रहगुज़ार है जाँ-ब-लब
किसी दिल की आस मिटी नहीं कहीं इक दरीचा कुशादा है