aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "लगने"
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तकउस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है
बिछड़ गए तो ये दिल 'उम्र भर लगेगा नहींलगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब सेचेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
हाथ ही तेग़-आज़मा का काम से जाता रहादिल पे इक लगने न पाया ज़ख़्म-ए-कारी हाए हाए
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना क़रीब सेचेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
मुझे अब तुम से डर लगने लगा हैतुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या
अपने सवाल सहल न लगने लगें उसेआते भी हों जवाब तो फ़र-फ़र न दीजियो
लगने दूँगा न हवा तुझ को ख़िज़ाँ की मैं 'ज़फ़र'फूल जैसा तिरा अंजाम न होने दूँगा
ये तो अब इश्क़ में जी लगने लगा है कुछ कुछइस तरफ़ पहले-पहल घेर के लाया गया मैं
बे-सैर-ए-दश्त-ओ-बादिया लगने लगा है जीऔर इस ख़राब घर में कि वीराँ नहीं रहा
पाँव में ख़ाक की ज़ंजीर भली लगने लगीफिर मिरी क़ैद की मीआद बढ़ा दी गई क्या
शनासा चेहरे भी लगने लगे हैं बेगानेअब अपना वक़्त ही शायद बदल रहा होगा
अजनबी लगने लगा है मुझे घर का आँगनक्या कोई शहर-ए-निगाराँ से बुलाता है मुझे
सद नश्तर-ए-मिज़्गाँ के लगने से न निकला ख़ूँआगे तुझे 'मीर' ऐसा सौदा न हुआ होगा
उस ने इक बार कहा कोई नहीं तुम जैसातब से मैं लगने लगी ख़ुद को भी प्यारी पागल
उस की तक़्दीस पे धब्बा नहीं लगने देतादामन-ए-दिल को हिसाबों से अलग रखता हूँ
ये जीना भी शतरंज ही ने सिखायाकि चालों के लगने पे चालें बदलना
'अमृत' तुम्हें भी दुनिया बरी लगने लग गईकोई तो इस जहाँ से तुम्हारा चला गया
बुलंदी भी नशेबों की तरह लगने लगी हैबुलंदी से उतरना अब ज़रूरी हो गया है
आँख न लगने से शब अहबाब नेआँख के लग जाने का चर्चा किया
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