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ग़ज़ल
बहुत मुश्किल है पास-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर करना
किसी से इश्क़ करना और वो भी उम्र भर करना
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
लिपट कर सो रहा हूँ लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-मोहब्बत से
ये इशरत बा'द-ए-मुर्दन ख़ाक में मिलती है क़िस्मत से
एस. नूरुद्दीन अनवर भोपाली
ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-अलम ही से सुकूँ आ जाए है
दिल मिरा उन की नवाज़िश से तो घबरा जाए है
सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर
ग़ज़ल
जो लज़्ज़त-ए-आशना-ए-दर्द-ए-हिज्राँ होते जाते हैं
सर-ए-कू-ए-तमन्ना वो ग़ज़ल-ख़्वाँ होते जाते हैं
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-दर्द का कुछ तुझ को पता है कि नहीं
नासेहा तू ने कभी इश्क़ किया है कि नहीं
आलम फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल-ए-सोगवार हो न सका
वो ग़म-नवाज़ रहा ग़म-गुसार हो न सका
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
मोहब्बत चारा-साज़-ए-दर्द-ए-फ़ुर्क़त होती जाती है
मिरी वहशत मुझे सामान-ए-राहत होती जाती है