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ग़ज़ल
जब ये आलम हो तो लिखिए लब-ओ-रुख़्सार पे ख़ाक
उड़ती है ख़ाना-ए-दिल के दर-ओ-दीवार पे ख़ाक
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मिटा हर्फ़-ए-मोहब्बत आप के आरिज़ पे ख़त निकला
हमारा नाम अब लिखिए तो लिखिए फ़र्द-ए-बातिल में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
उधर बाक़ी हवस है बे-हिसाब उस को जफ़ाओं की
इधर लिखिए वफ़ाओं की तो कुछ अपना ही फ़ाज़िल है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
क़ासिद जवाब-ए-ख़त हम लिख दें शिताब क्यूँकर
वाँ तो जवाब माँगा लिखिए जवाब क्यूँकर
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
नज़र से सफ़्हा-ए-आलम पे ख़ूनीं दास्ताँ लिखिए
क़लम से क्या हिकायात-ए-ज़मीन-ओ-आसमाँ लिखिए