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ग़ज़ल
क्यूँ न तश्बीह उसे ज़ुल्फ़ से दें आशिक़-ए-ज़ार
वाक़ई तूल-ए-शब-ए-हिज्र बला होता है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
कोई पूछेगा जिस दिन वाक़ई ये ज़िंदगी क्या है
ज़मीं से एक मुट्ठी ख़ाक ले कर हम उड़ा देंगे
अनवर जलालपुरी
ग़ज़ल
मैं भी रहा हूँ ख़ल्वत-ए-जानाँ में एक शाम
ये ख़्वाब है या वाक़ई मैं ख़ुश-नसीब था
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
क्या है मेरे दिल की हालत वाक़ई कैसे कहूँ
क्यूँ है मेरी आँख में इतनी नमी कैसे कहूँ