आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "शक्ल-ओ-शबाहत"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "शक्ल-ओ-शबाहत"
ग़ज़ल
सुन के ये शक्ल-ओ-शबाहत तेरी उस शोख़ ने आह
वहीं मा'लूम क्या ये कि 'नज़ीर' आया है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
शक्ल-ओ-शबाहत में बे-शक कुछ फ़र्क़ ज़रा सा था वर्ना
थे तो मसीहा भी इंसान और क़ातिल भी इंसान मिरे
कौसर नियाज़ी
ग़ज़ल
उधर वो आइने में अक्स-ए-रू अपने का है माइल
इधर हर शय में वो है जल्वा-गर-ए-शक्ल-ओ-शमाइल है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
शक्ल-ओ-सूरत देखने लाइक़ थी तब सय्याद की
क़ैद पंछी जब परों को फड़फड़ा कर ख़ुश हुए
वीरेन्द्र खरे अकेला
ग़ज़ल
जितनी दिलबर की मिरे शक्ल-ओ-शमाइल है हसीं
इतनी दिलकश और इतनी ख़ूब-रू क्या चीज़ है
ज़की तारिक़ बाराबंकवी
ग़ज़ल
तस्वीर उस की कैसे खिंची मानी-ए-ख़याल
हैरान जिस की शक्ल-ओ-शमाइल में रह गया
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
किसी कमसिन का ये 'मसऊद' से दिल तोड़ कर कहना
खिलौना दूसरा लाओ कोई इस शक्ल-ओ-सूरत का