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ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-शम'-ए-फ़रोज़ाँ से परेशाँ न हुआ
दिल क़नाअ'त के करम से तही-दामाँ न हुआ
काैसर परवीन काैसर
ग़ज़ल
दाग़-ए-दिल दाग़-ए-जिगर शम-ए-फ़रोज़ाँ हो गया
उन के आते ही मिरे दिल में चराग़ाँ हो गया
फ़ाज़िल काश्मीरी
ग़ज़ल
हर इक नक़्श-ए-क़दम शम-ए-फ़रोज़ाँ होता जाता है
जहाँ से वो गुज़रते हैं चराग़ाँ होता जाता है
पयाम फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
हम को नहीं है फ़िक्र किसी बात की 'नियाज़'
तारीकियों में शम-ए-फ़रोज़ाँ की फ़िक्र है
अब्दुल मतीन नियाज़
ग़ज़ल
जब मुक़द्दर में अंधेरा लिख दिया तू ने ख़ुदा
कौन देखेगा बता शम-ए-फ़रोज़ाँ की तरफ़
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
बीते हुए दिनों की फ़क़त याद रह गई
महफ़ूज़ दिल में शम’-ए-फ़रोज़ाँ है और हम