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ग़ज़ल
हम चूमते रहते हैं हर दम फ़ितरत की हसीं पेशानी को
आज़ाद-मनश हम अहल-ए-नज़र क़ानून-ओ-शरीअ'त क्या जानें
सय्यदा फ़रहत
ग़ज़ल
रौशनी की शरीअत में रोज़-ए-अज़ल से यही दर्ज है
जोत से जोत जलती रहेगी सदा रखना रौशन दिया
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
ख़ुदा तेरा निज़ाम-ए-अद्ल रब्ब-उल-आलमीं तेरा
शरीअ'त तुझ को देती है इजाज़त चार जिस्मों की
सबाहत उरूज
ग़ज़ल
इबादत नाम है उस का शरीअ'त है लक़ब उस का
दिल-ओ-जाँ से जो ख़िल्क़त की इताअ'त हो इताअ'त हो